आज हम भारत के उन ias अधिकारी के बारे में जानेंगे जो की बहुत ग़रीब परिवार से थे,जिनके पास बहुत अच्छी कोचिंग में पढ़ने के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं थे।
इसके बावजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी और और ias अधिकारी बने।
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तो चलिए अब हम जानते हैं,आखिरकार वह कौन कौन से गरीब आईएएस अधिकारी हैं,जिन्होंने अपने कठिन दृढ़ संकल्प से ias आधिकारी बनने का सपना पूरा किया।
बहुत गरीब आईएएस अधिकारियों की list
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- IAS govind jaiswal
- IAS Hasan safin
- IAS Tapasya parihar
- IAS Sivaguru Prabhakaran
- IAS Surya Kant Dwivedi
- IAS Ansar Ahmad Shaikh
- IAS Gopala Krishna Ronanki
- IAS Sweta Agarwal
- IAS Shikha Surendran
- IAS Mohammad Ali Shihab
ऐसे ही और भी बहुत सारे आईएएस अधिकारी हैं,जो बहुत गरीबी से पढाई करके अपने दृढ़ विश्वास और अटूट संकल्प से आईएएस अधिकारी बने है।
इस परीक्षा को पास करने वाले योद्धा माने जाते हैं ,जिन्होंने अपना जीवन किताबों और ज्ञान में समर्पित कर दिया पर बहुत सारे लोगों का संघर्ष सिर्फ पढ़ाई ही नहीं होता,बल्कि गरीबी,सुविधाओं का अभाव और गाइडेंस की कमी भी होती है।
बहुत से कैंडिडेट गरीबी में जीते हैं,लेकिन उनके इरादें और सपने बहुत बड़े होते हैं।गरीब बच्चे बड़े-बड़े सपने तो देखते हैं,लेकिन उनको पूरा करने के लिए उन्हें दिन रात एक करना पड़ता है।
अब हम कुछ ऐसे गरीब आईएएस अधिकारी के कठिन और संघर्ष पूर्ण जीवन के बारे मै विस्तार में बात करने जा रहे हैं,कि किस तरह वह एक गरीब परिवार से होते हुए भी अपनी दृढ़ संकल्प के जरिए वह एक आईएएस अधिकारी बने।
आईएएस गोविंद जायसवाल (IAS Govind jaiswal)
गोविंद जायसवाल,अब एक आईएएस अधिकारी हैं,जो कभी एक साधारण आदमी था और एक रिक्शा चालक का बेटा था।
गोविंद ने अपने पहले प्रयास में भारत की सिविल सेवाओं की प्रतियोगी परीक्षा में सफलता प्राप्त की। उन्होंने 2006 में यूपीएससी परीक्षा के लिए आवेदन किया।
जिसे सबसे कठिन में से एक परीक्षा माना जाता है,उस परीक्षा में उन्होने 474 प्रतिभागियों के बीच 48वां स्थान हासिल किया।
इनका प्रारंभिक जीवन
गोविंद जायसवाल के पिता एक सरकारी राशन की दुकान पर काम करते थे,उस समय उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण वह रिक्शा खरीदने में असक्षम थे, इसलिए उन्होंने किराए पर एक रिक्शा लिया था।
एक समय पर,परिवार मध्यम रूप से आर्थिक रूप से सुरक्षित था।लेकिन चीजें बदतर हो गईं और परिवार को गोविद जायसवाल के पिता की कम कमाई पर जीवित रहना पड़ा।
गोविंद के लिए पढ़ाई करना आसान नहीं था,उन्होंने कई तरह के तानों को सुना जैसे,‘पढ़ाई से क्या हासिल होगा?
आप शायद दो रिक्शा के मालिक हो सकते हैं। लेकिन,उन्हें अपने परिवार से बहुत समर्थन मिला,उन्हें दिल्ली में रहने के लिए समर्थन उनके परिवार से ही मिला।
वाराणसी में उनके एक कमरे के घर मैं,बिजली कटौती वाले आवास से अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने में वह असमर्थ थे। इसलिए दिल्ली जाने का फ़ैसला किया।
आईएएस अधिकारी बनने का सफर
गोविद जायसवाल के पिता ने उसे दिल्ली भेजने के लिए अपनी जमीन का एक टुकड़ा बेच दिया था,इसी बीच उनके पिता की टांग खराब हो गई और उन्हें रिक्शा खींचना बंद करना पड़ा।
गोविंद जानता था कि वह किसी को निराश नहीं कर सकता।
उसके पास सफल होने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था,वह जानता था,कि उसके पास दूसरे या तीसरे प्रयास की विलासिता नहीं है।
अब आपके मन में यह बात आयेगी क्या गोविंद ने ली थी आईएएस की कोचिंग? नहीं,वह मैथ्स की ट्यूशन देने में व्यस्त था और पैसे बचाने के लिए उसने दिल्ली में खाना भी छोड़ दिया था।
उसके पास अध्ययन सामग्री और अन्य संसाधन खरीदने के लिए मुश्किल से पैसे थे।
हम ऐसा कह सकते हैं,कि इनका जीवन संघर्ष से घिरा जीवन था।हालांकि,सफल होने के बाद उनकी सारी कोशिशें रंग लाईं और अपने पहले प्रयास में ही।
गोविंद जायसवाल,जिन्होंने वाराणसी के एक सरकारी स्कूल और एक मामूली कॉलेज में पढ़ाई की है।
इन्होंने 2006 में 22 साल की छोटी उम्र में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में 48 वीं रैंक हासिल की।
आईएस तपस्या परिहार (Tapasya Parihar)
मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर की रहने वाली तपस्या परिहार (Tapasya Parihar) ने यूपीएससी परीक्षा 2017 में ऑल इंडिया में 23वीं रैंक प्राप्त की थी और आईएएस अफसर बनीं।
तपस्या की कहानी भी काफी दिलचस्प है। क्योंकि उन्होंने कोचिंग क्लास छोड़कर self study पर भरोसा किया और सफलता प्राप्त की है।
इनका प्रारंभिक जीवन
मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर की रहने वाली तपस्या परिहार (Tapasya Parihar) ने अपनी शुरूआती शिक्षा सेंट्रल स्कूल से पूरी की।
10वीं और 12वीं, दोनों में तपस्या ने स्कूल टॉप किया था। यहीं से यूपीएससी (UPSC) का सपना देखना शुरू कर दिया गया था। इसमें तपस्या की दादी उन्हें हमेशा हौसला देती रहीं।
जहां आमतौर पर घरों में लड़कियों की शादी करने की जल्दी रहती है,ज्यादा पढ़ाने की ओर परिवार का ध्यान नहीं रहता है,वहां तपस्या के परिवार ने उन्हें पूरा सपोर्ट किया।
मध्यप्रदेश से स्कूली शिक्षा ग्रहण करने के बाद तपस्या आगे की पढ़ाई के लिए पुणे चली गईं,यहां से उन्होंने कानून की डिग्री हासिल की।
आईएस बनने का सफर
तपस्या परिहार (Tapasya Parihar) मूल रूप से मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर की रहने वाली हैं।उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई केंद्रीय विद्यालय से की।
इसके बाद उन्होंने पुणे के इंडियन लॉ सोसाइटी लॉ कॉलेज (Indian Law Society’s Law College) से वकालत की पढ़ाई की।
तपस्या परिहार (IAS Tapasya Parihar) के परिवार को उसके दिल्ली जाने और अकेले रहने में सहज महसूस नहीं हुआ,हालांकि बाद में वो भी मान गए।
कोचिंग के दौरान तपस्या को ये महसूस होने लगा वो यहां पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएगी। इसी बीच तपस्या पहली बार यूपीएससी एग्जाम में बैठी।
तपस्या परिहार एक किसान पिता की बेटी है,जब दिल्ली यूपीएससी की तैयारी के लिए पहुंची तो पहली बार मै उसे सफलता नहीं मिली।
इसके बाद तपस्या ने कोचिंग छोड़ दी और self study पर अपना पूरा ध्यान फोकस कर लिया।
अगली बार जब तपस्या सिविल परीक्षा में बैठी तो उसने कहा कि वो अपना 100 प्रतिशत इस एग्जाम में नहीं दे पाई है, लेकिन जब यूपीएससी का रिजल्ट आया तो तपस्या ने 23वीं रैंक हासिल की थी।
आईएससी शिवागुरु प्रभाकरण (IAS Sivaguru Prabhakaran)
देश में कई युवा ऐसे हैं,जो अपनी जिंदगी के कठिन परेशानियों को अंगूठा दिखाकर यूपीएससी की परीक्षा अपने जज्बे और जुनून के बदौलत पर पास करते हैं।
ऐसे लोग समाज के एक बड़े तबके के लिए मिसाल बन जाते हैं।आज हम एक ऐसे ही आईएएस अधिकारी की बात कर रहे हैं।
जो कभी मजदूरी करके अपने परिवार का गुजर-बसर क्या करते थे,इनका नाम है एम शिवागुरु प्रभाकरन।
इनका प्रारंभिक जीवन
एम शिवागुरु प्रभाकरन तमिलनाडु के तंजावूर जिले के रहने वाले हैं।बचपन से ही उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बिल्कुल ठीक नहीं थी।
घर में शराबी पिता ने शराब के लिए सब कुछ बेच दिया था। हालात ऐसे थे कि घर में खाना खाने के भी पैसे भी पूरे नहीं पड़ते थीे।
आर्थिक तंगी की वजह से मां ने बांस की टोकरियां बनाकर बेचने का काम शुरू किया,इसी तरह परिवार का गुजारा चलने लगा।
इसके बाद उनकी मां और बहन दोनों मिलकर इन टोकरियों को बनाने का काम करने लगे।
प्रभाकरण पढ़ाई में बचपन से ही अच्छे थे, लेकिन शराबी पिता की वजह से उन्हें भी घर की जिम्मेदारियां उठानी पड़ी।
परिवार की जिम्मेदारियों के कारण प्रभाकरण ने 12वीं की पढ़ाई छोड़ दी और वह भी घर की जिम्मेदारियों को निभाने में जुट गए।
प्रभाकरण बचपन से ही इंजीनियर बनना चाहते थे, लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ तले उनका यह सपना टूट गया था।
आईएस बनने का सफर
पढ़ाई छोड़ने के बाद प्रभाकरण आरा मशीन में लकड़ी काटने का काम करने लगे,2 साल तक उन्होंने यहां काम किया।
इसके बाद उन्होंने मजदूरी भी की, लेकिन पढ़ने लिखने की दिलचस्पी अभी तक उनकी कम नहीं हुई थी।
वह मजदूरी करने के बाद अपना खाली समय स्टेशन पर चले जाते और वहां बैठकर पढ़ाई करते।
प्रभाकरण ने जी तोड़ मेहनत की और आखिरकार उन्होंने आईआईटी की एंट्रेंस परीक्षा पास कर ली।
इसके बाद उन्होंने अपनी आईआईटी की पढ़ाई पूरी की और प्रभाकरण ने M.Tech में एडमिशन लिया और यहां भी उन्होंने टॉप रैंक हासिल की।
M.Tech के बाद भी प्रभाकरण अपनी जिंदगी में कुछ ऐसा करना चाहते थे।
जिससे वह दूसरों की मदद कर सकें ,साथ ही उनका पढ़ाई का जुनून भी बाकी था।
उन्होंने साल 2017 में यूपीएससी की परीक्षा दी और 101वीं रैंक हासिल की।
इन्होंने 990 कैंडिडेट के बीच चौथी बार में प्रभाकरण ने कामयाबी के इस मुकाम को हासिल किया।
यूपीएससी की परीक्षा पास करना हर किसी के लिए एक सपना होता है।
ऐसे में जब प्रभाकरण ने यूपीएससी की परीक्षा पास की और ट्रेनिंग करने के बाद अपने गांव पहुंचे,तो लोग उन्हें देखकर हैरान रह गए।
कुछ साल पहले तक जिस परिवार से गांव के लोग बात करना भी पसंद नहीं करते थे, आज वह उसी परिवार के बेटे की सफलता का किस्सा अपने बच्चों को सुनाने लगे।
बताने लगे कि किस तरह एक लकड़ी काटने वाले मजदूर ने एक आईएएस बनने का सफर तय किया।
एम शिवागुरु प्रभाकर आज उन लोगों के लिए एक मिसाल है,जो अपनी जिंदगी में कुछ करना चाहते हैं।
Conclusion
इस आर्टिकल में मैंने आपको बताया हमारे भारत में कौन-कौन से ऐसे गरीब आईएएस अधिकारी हैं।
जिन्होंने अपना जीवन पूरे संघर्ष से व्यतीत किया और अपने कठिन परिश्रम और दृढ़ निश्चय के कारण एक आईएएस अधिकारी बने।
इसके अलावा उन आईएएस अधिकारी में से कुछ अधिकारी के संघर्षपूर्ण जीवन के बारे में विस्तार पूर्वक व्याख्या भी की है।
आशा करती हूं मेरे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी।
धन्यवाद।